Tuesday, November 23, 2010

कुछ लोग थे जो वक्त के सांचो में ढल गए
और कुछ लोग थे जो की वक्त के सांचे बदल गए
जब आम की गुठली धरती में बोई जाती है
अमूमन बोने वाला आम नहीं खा पाता है
मगर आगामी पीढ़िया जब आम खाती है
तब कभी न कभी बोने बाले की याद आ ही जाती है
आज अगर हम समाज हित कुछ करेंगे
निसंदेह एक दिन हमारे बच्चे सुफल चखेंगे
गर हमने समाज हित कुछ न किया
निसंदेह हमारे बच्चे हमें क्यू कर याद करेंगे ?
आज देखो हर समाज उत्तरोत्तर प्रगति कर रहा है
तब क्या हम भी उनसे प्रगति की प्रेरणा गृहण नहीं करेंगे?
ये तो सराय खाना हे मनुज आये है तो जाना है
मगर इतिहास भी हमे याद करे क्यया समाज हित ऐसा कुछ नहीं रचेंगे?
अगर हम सिर्फ अपनी-अपनी तिजोरियां ही भरने में रहे
तब क्या और समाज के लोग हमारे लिए तिजोरियां खाली करेंगे ?
ये तो पुरुषार्थ है कोई तन से करेगा, कोई मन से, कोई धन से
मगर हम अपने समाज हित कब तक एक-दुसरे का मुहँ तकेंगे?
देखो हमारी संस्कृति में मह्रिषी दधिची ने मानव समाज हित अपनी हड्डियों का दान कर दिया
तब क्या दधिची व् दानवीर कर्ण की परम्परा का हम निर्वहन नहीं करेंगे?
मैं आहवान करता हूँ हे समाज के बंधू बांधवों का
क्या हिन्दू संस्कृति के सौपानो का हम भी सम्मान नहीं करेंगे?
सर कटे, धड लड़े उस सिरोही के हम वासी है
क्या हिंदुस्तान के माथे पर हम भी रोई परगना वाले तिलक नहीं करेंगे?
तो आईये किस बात की चिंता फिकर, शर्म, संकोच करते हो?
गर आन पड़ी तो ''हेमंत'' समाज हित अपनी जाँ भी फना करेंगे............

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